मऊ: भगवान नही मौत का सौदागर है यह डाक्टर

- जिस डाक्टर को हम भगवान मानते है यदि वह सरकार के मानक पुरा नही करता है तो भगवान नही वह शैतान कहलाता है

- सही तरीके से विभागीय जाच हुयी तो नगर क्षेत्र के अस्पतालों का लाइसेंस होगा निरस्त

- तीन चार अस्पतालों को छोड़कर नही पुरा है किसी भी अस्पताल का मानक

- करीब चार अस्पतालों को छोड़ दिया जाय तो किसी में नही प्रशिक्षित वार्ड व्याय व् नर्श जो भर्ती मरीजो को लगाती है इंजेक्शन और सुबह- देती है दवा

जरूर पढ़े एक नजर में कौन है यह मौत का सौदागर

विवेक सिंह ब्यूरो रिपोर्ट

मऊ। जनपद में ऐसे डाक्टर है जो भगवान् नही मौत के सैदागर है।
आइये हम बताते है कैसे है यह मौत के सौदागर कौन है यह सौदागर है। हम बात कर रहे है नगर क्षेत्र के नरई बाध स्थित बच्चों के डा0 राजकुमार सिंह के बारे में , आपने गावो में देखा होगा कि कुछ झोला छाप डाक्टर मरीज को अपने यहाँ आते देख अतुर हो जाते है और मरीज की पुरी बात अभी सुने भी नही रहते है कि तब तक मरीज को दवा पकड़ा देते है अक्सर आप देखते है। कि ये डाक्टर मनमाने दवा चलाकर मरीज को ठीक करने के बजाय उनकी तबियत और विगाड़ देते है।

एक महत्वपूर्ण बात और बता रहे है जिस डाक्टर को हम भगवान् मानते है।उस डाक्टर के लिये भी सरकार ने कुछ मानक तय किया है जिसे यह डाक्टर यदि पुरा नही करते है तो यह डाक्टर भगवान् नही शैतान हो जाते है।

वाराणसी के एक वरिष्ट डाक्टर ने बताया कि मऊ में अधिकतर डाक्टर झोलाछाप डाक्टरों की श्रेणी में ही है। और अधिकतम डॉक्टरों के पास अस्पताल खोलने का लाइसेंस भी नही है। क्योकि जितने मऊ नगर क्षेत्र में आवासीय क्षेत्र में है। उस आवासीय क्षेत्र में किसी भी डाक्टर को अस्पताल खोलने का लाइसेंस नही मिलना चाहिये। कारण हम बताते कि क्यों नही मिलना चाहिये- क्योकि जब संक्रामक और महामारी जैसे रोग फैलते तो लोग अस्पतालों के तरफ लेकर भागते है और आप सभी जानते है अधिकतम रोग इंफेक्शन से फैलते है।जब आप जानते है कि अधिकतम रोग इंफेक्शन से फैलता है तो यह जानना जरूरी है कि यही कारण सरकार किसी भी अस्पताल को आवासीय जगह में अस्पताल खोलने के बजाय कामर्शियल जगह में खोलने के लिये लाइसेंस देती है। उसके पीछे सीधा सा कारण है कि जब कोई भी मरीज अस्पताल में भर्ती हो तो उसके कीटाणु आस पास रहने वाले लोगो में न फैले। और गम्भीर हालात के मरीजो को अस्पताल में ले जाने के लिये एम्बुलेंस की जरूरत होती है। जो आसानी से अस्पताल के यहाँ पहुच सके।और यही कारण है कि अस्पताल को कामर्शियल जगह पर खोलने की अनुमति दी जाती है। अब आप ही बताइये इस हिसाब से कितनेअस्पताल का लाइसेंस मऊ नगर क्षेत्र में मिला होगा।

आइये एक ऐसे ही अस्पताल के बारे में बताते है जिसके पास न ही अस्पताल का लाइसेंस है न ही अस्पताल चलाने संबंधी कोई मानक ही पुरा करते है सबसे पहले हम शुरूआत बच्चों के डाक्टर राजकुमार सिंह के बारे में यह डाक्टर तो अवसाद का शिकार मालूम पड़ता है क्योकि एक डाक्टर का स्वभाव होता है अपने मरीजो से व् उनके साथ आये मरीजो से विनम्रता से बात करे । लेकिन यह डाक्टर तो अपने मरीज के परिजनों पर ही भड़क जाता है। अब आप ही बताइये जब डाक्टर अपने मरिज के परिजनों पर ही भड़क जाता हो वह भला बीमार बच्चों का क्या इलाज करेगा। यही नही इनके यहाँ कार्य करने वाले सहायको का भी वही हाल है। आखिर हो भी क्यों न जब मखिया ही अवसाद ग्रस्त हो। आप सभी जानते है जहा शिक्षा का अभाव होता है वहा संस्कार का भी अभाव होता है अर्थात इनके यहाँ यदि विभागीय जाच तरीके सही हुयी तो एक भी सहायक प्रशिक्षित नही मिलेगा कोई भी सहायक चाहे पुरूष हो या महिला कोई भी वार्ड ब्याय या नर्श सम्बंधी कोर्स नही किया है। आपने अक्सर देखा होगा कि जब किसी अस्पताल में हम मरीज भर्ती करते है तो इनके वार्ड ब्याय या नर्श ही इंजेक्शन लगाते या शाम सुबह दवा खाने को देती है और जब यह प्रशिक्षित नही रहेगी तो जाहिर सी बात है इंजेक्शन लगाये या दवा दे कोई न कोई गलती जरूर करते होंगे। और कारण है कि मरीज एक बीमारी से अभी ठीक हुआ नही कि दुसरी बीमारी जकड़ लेती है।

सबसे मजे कि बात तो यह है की डाक्टर राजकुमार सिंह जिस स्थान पर धड़ल्ले से अपना अस्पताल चला रहे उसका रजिस्ट्रेशन अस्पताल के नाम से नही बल्कि क्लीनिक के नाम से है। और पता नही इनकी जो डिग्री है वह भी सही है कि वह भी पैसे के दम पर ही खरीदी हुयी है। क्योकि यह 20 वर्षो से प्रैक्टिस कर रहे है आज तक अस्पताल के नाम से लाइसेंस नही लिये है।और अस्पताल चला रहे है। यह एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।

क्या आप जानते है क्लिनिक और अस्पताल के बारे में विभागीय वरिष्ट अधिकारी ने बताया कि क्लीनिक का रजिस्ट्रेशन वह रजिस्ट्रेशन होता है जिसमे डाक्टर अपनी देख रेख में केवल एक से दो मरीजो को रख सकता है । वह भी 24 घण्टे से अधिक नही है। यदि मरीज की स्थित गम्भीर हो तो उसे किसी अच्छे अस्पताल में भर्ती करने की सलाह देते है। तो ऐसा ही रजिस्ट्रेशन है डाक्टर राजकुमार सिंह के पास जो केवल एक से दो मरीजो को अपने पास देख रेख में रख सकते है। लेकिन इनके यहाँ तो कुछ और ही चलता है अपने यहाँ एक दो नही कई मरीजो को एक साथ भर्ती करते हैं।

भगवान् नही मौत का सौदागर है यह डाक्टर

सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार अभी कुछ ही वर्ष पूर्व इनके अस्पताल में इनकी लापरवाही के चलते एक बच्चे की मौत हो गयी थी। जिसके बाद परिजनों ने इनके क्लीनिक पर चढ़कर मार पीट किया था और डाक्टर साहब और इनके कर्मचारी एक कोने में जाकर दुबक गये थे। भला ऐसे डॉक्टर को भगवान् कहेगे की मौत का सौदागर कहेगे। जी हा ऐसे डाक्टर को विभागीय जाँचकर एक ऐसी कार्यवाही होनी चाहिये जो मरीजो के जिंदगी के साथ खिलवाड़ होने से बच सके।


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